अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ Secrets

अहम् अपने-आपको आत्मा समझता है। अहम् क्या है? ‘कै’। आत्मा क्या है? ‘मैं’। पर अहम् अपने-आपको आत्मा समझता है, यही गड़बड़ हो गई है। तो अहम् जब अपने-आपको आत्मा समझता है तो सोचता है कि अगर अहम् हटा तो आत्मा भी हट जाएगी। नहीं बाबा, अहम् हटा तो आत्मा नहीं हटेगी, अहम् हटा तो अहम् ही हटेगा। ‘कै’ हटेगा तो ‘मैं’ नहीं हटेगा।

शब्दों को लिखिए, जैसे- फुटबॉल के खेल से संबंधित शब्द हैं- गोल, बैंकिंग, पासिंग,

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पर अहम् माने कैसे कि, "हमने झूठ बोला था"? अहम् माने कैसे कि पुरानी ग़लती करी थी? अपने-आपको देखो न, तुम्हें ग़लती मानना अच्छा लगता है कभी? तो तुम ही तो get more info अहम् हो। अहम् को नहीं अच्छा लगता कि मान ले कि ग़लती कर दी। सारी ग़लतियाँ किसने करी हैं?

आचार्य: मैं समझ गया। मैं आपकी भावना बिलकुल समझता हूँ। लेकिन जो बाहर का आदमी इस शब्द को सुनता है….।

जो आपको सरल लगे वह आप अपना लेखन कर सकते हैं और उदासीन कक्षा को रोचक बना सकते हो

आचार्य: उसका होना ही दिक़्क़त है, उसे याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है। वो जब भी है, जहाँ भी है, जैसा भी है उसे लगातार दिक़्क़त है। वो अगर दाएँ जा रहा है तो भी उसे दिक़्क़त है, वो बाएँ जा रहा है तो भी उसे दिक़्क़त है। उसे बहुत खाने को मिल गया तो भी दिक़्क़त है, उसे कुछ नहीं मिला तो भी दिक़्क़त है। वो हार गया तो भी दिक़्क़त है, वो जीत गया तो भी दिक़्क़त है। उसका नाम ही दिक़्क़त है, उसकी हस्ती ही दिक़्क़त है।

सबकुछ अपना झोंक दो सही दिशा में और फिर जब लगे कि अब रुक गये, टूट रहे हैं, तब प्रार्थना करने की ज़रूरत नहीं, प्रार्थना हो गयी।

है? वहीं दूसरी और छोटी-बड़ी गलतियों में माफी माँगना लोग अपनी शान के खिलाफ समझते

जैसे कि एक व्यक्ति अपने नौकरी के लिए विज्ञापन दिया है यह न्यूज़ पेपर में आप एक

वास्तव में अंजाम बाद में भी नहीं आता, उनकी ज़िन्दगी तब भी तबाह होती है जब वो तुम्हारे सामने ‘कूल डूड' बनकर घूम रहे होते हैं। उनकी ज़िन्दगी तब भी तबाह ही होती है। बस तुम्हारे सामने एक प्रकार का स्वांग रचा जाता है। तुम्हे धोखा देने के लिए एक नाटक किया जाता है।

राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात से उन्हें खास होने का अहसास हुआ।

अहंकार डॉ. गोरख प्रसाद ’मस्ताना’ एक आग का दरिया 

जानकारी प्राप्त कर कुछ प्रश्न तैयार करें और साक्षात्कार लें।

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